1971 का इंडो-पाक युध्द शायद भारत के इतिहास का एक यादगार क्षण है. तब हमलोग रांची में थे. मेरी उम्र 23 वर्ष थी और हमलोग उस युद्ध के हरेक क्षणों से रेडियो के माध्यम से जुड़े थे. युद्ध समाप्त होने के करीब एक महीने बाद अचानक एक दिन सब्जियों और मांस के दामों में 30% से ज्यादा की वृद्धि हो गयी. हम पढ़े-लिखो को जो समाचार पत्रों और रेडियो से हर पल की खबर रखते थे, उन्हें हैरानी तब हुई जब एक वृद्ध सब्जीवाली ने बताया कि इसका कारण हजारों पाकिस्तानी कैदियों का आगमन है. रांची की आबादी उस समय 3 लाख थी और कैदियों की संख्या 90,000 से ऊपर रही होगी. मालूम हुआ उन्हें रांची से 5 किलोमीटर दूर नामकुम में रखा गया है, जो उस समय सिख रेजिमेंट का गढ़ था. ये बात ज्यादा गंभीर तब हो गयी जब पाक ने एक स्टाम्प निकाला जिसमे पाक सैनिकों को भेढ़-बकरी जैसा कैद दिखाया गया था. इसे टाइम्स-लन्दन ने प्रकाशित किया था.
हमलोग 6 जन साइकिल पर
मार्च की दोपहरी में POW camp की पड़ताल करने निकले. क्या नज़ारा था. करीब 1X1 KM के दायरे में 15X15X12 feet के सैकड़ो मिटटी
के गोल घर बने थे जिनकी छतें बांस-फूंस से ढकीं थी. हरेक घर ज़मीन से २ फीट ऊपर था
और चार 6X3 feet का निकास द्वार बना था जो घरों को
हवादार भी बना रहा था. हरेक में चार-चार कैदी थे. सब 6 फीट से ऊपर सफ़ेद गंजी और खाखी हाफ पैंट पहने हुए. दिन का
११ बज रहा होगा. सभी ताश खेल रहे थे और उनमे से कुछ सिगरेट पी रहे थे. दो-तीन
ट्रालियाँ शायद पेय लेकर घूम रही थीं. 8 feet ऊंचे कंटीले तार
के बाहर लोगों का हुजूम लगा था. तभी नजदीक के शिविर से दो पाक कैदी निकले. लोगों
ने हाथ हिला कर उनका अभिभावन किया. उन्होंने भी हाथ हिला कर जवाब दिया. आज मैंने utube
में Pak POW पर विडियो देखी. दो हकीकत निखर कर सामने आयीं. India Incredible व् Manekshaw was a
jolly good fellow !
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