Friday, September 21, 2012

भारत २०२५


कुछ दिन पहले मैं थोक में कुछ किराना सामान लेने मंडी गया. वहाँ मैंने देखा कि सेठ ने अपने बगल के फर्श में एक 6X3X3 फीट का एक पिट बना रखा था . वह पिट ऊपर से एक लोहे की जाली से ढंका हुआ था. उसमें सैकड़ों रंग-बिरंगी पोटलियाँ रखी हुई थी. लोग आते थे.  सेठ पहचान कर उन्हें उनकी पोटलियाँ दे देता था. कुछ लोग पोटलियाँ रखने भी आते थे. सेठ उनपर एक टैग लगाकर उसी पिट में फेंक देता था. मालूम हुआ यह प्रथा चिरंतन काल से चली आ रही है. लोग आज भी इस तरीके की बैंकिंग में पूरा विश्वास रखते हैं. उस पिट में हर समय करोंडों की संपत्ति रहती है. सबकुछ आज भी ईमानदारी से हो रहा है उसकी यह जीती-जागती मिसाल थी.
मेरे हाथ 1949 की किराना की एक रसीद लगी. उस समय शुद्ध घी का दाम 1 रुपये 25 पैसे था.  दस प्राणियों के परिवार के लिए 40 रुपये की रसद पर्याप्त होती थी, जिसमें घर की बाई, नौकर भी शामिल रहते थे. आज वही घी 200 रुपये का हो गया है पर यकीनन शुद्ध नहीं है.   
मुझे एक 1957 की रसीद भी मिली. मुझे याद है, जब मैं 9 वर्ष का था तो माँ मुझे किराना से खुदरा सामान लेने भेजती थी. 8-10 सामानों की फेहरिस्त मैं मुह्जबानी याद रखता था और चन्दन राम सेठ के पास एक सांस में दुहरा दिया करता था जिससे भूल न जाऊं. सेठ सब सामान दे दिया करता था. पहली तारीख को उधार चुकता कर दिया जाता था. न सेठ ज्यादा लेता था न हमलोग कम दिया करते थे. हाँ, जो पैसा चुकाने जाता था उसे सेठ एक-दो टाफी जरूर दिया करता था . 1957 में ईमानदारी का यह आलम था.
1963 में हमलोग कुछ साथी पिकनिक पर गए. सबने लीडर साथी के पास खर्चे का पैसा जमा कर दिया. पिकनिक में लगा कि लीडर ने सभी समान काफी सस्ते में लिए होंगे. बाद में उसने हमलोगों को फोटो के प्रिंट्स भी दिए. बहुत बाद में उसने बताया कि उसने कुछ 10% पैसा अलग से लगाया था जिससे कि हमलोगों को किसी बेईमानी की शंका न रहे. ऐसा भी होता था.
1992 में, मैं दो महीने की ट्रेनिंग के बाद कलकत्ता से लौट रहा था. रांची रेलवे स्टेशन पर मालूम हुआ कि उस दिन हड़ताल थी. बड़ी मुश्किल से दूर एक रिक्शावाला दिखा. मैंने तय किया की उसे वाजिब 10 रुपये भाड़े की जगह मैं 20 रुपये दूंगा. मैं रिक्शा पर बैठ गया और उसे कालोनी ले चलने को कहा. रिक्शावाला थमक गया और बोला’ “ हम पहले बोल देते हैं, दस रुपये से एक भी पैसा कम नहीं लेंगे.” खैर मैंने घर पहुंचकर उसे 20 रुपया ही दिया. रिक्शावाला चाहता तो हड़ताल का हवाला देकर मुझसे कुछ भी वसूल कर सकता था. कुछ दिनों बाद जब मैं ट्रेन से लौट रहा था तब एक नवजवान टिकेट कलेक्टर से भेंट हुई. उसने मुझसे वेटिंग लिस्ट से स्लीपर कनवरशन के बिल्कुल सही पैसे लिए और रसीद भी दी. हाँ, वह छुट्टे के 50 पैसे भी लौटाने आया था.
अभी कल ही की तो बात है. मेरा एक सीलिंग फैन से महंक आने लगी. मैंने उसे ऑफ कर दिया. पास के रिपेयर शॉप से बात की. मैंने कारीगर से वाईंडिंग का रेट पूछा. उसने बताया कि आजकल रेट 325 रुपये है. मैं वह पंखा लेकर उसके पास गया. उसने मुझे बैठने को कहा. उसने पंखा खोल कर देखा और बताया कि वाईंडिंग ठीक है पर एक-दो जगह कटी हुई है. मुझे रिपेयर के मात्र 125 रुपये ही देने होंगे. वह चाहता तो पूरे 325 या उससे भी ज्यादा रुपये ऐंठ सकता था.
मेरे घर से पूरब की ओर पैसेवाले रहते है. उधर आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते जायेंगे सब्जियों का दाम बढ़ता हुआ साफ़ नजर आएगा. घर से पश्चिम का इलाका गाँव की ओर जाता है. उस तरफ आप बढ़ते जाईये और ताज़ी सस्ती सब्जियों से मुलाकात कीजिये.
हमलोग बहुत दिनों बाद अपने घर लौटे. कुछ लोग मिलने भी आये . इस गहमा-गहमी में मेरी श्रीमतीजी का सोने का चेन खो गया. मैं घर की बाई पर कैसे शक करता जो जब कभी भी बुहारू करते समय कान की रिंग अथवा सिक्के गिरे होते हैं तो उसे उठाकर सामने रख दिया करती है. हमलोगों ने किसी से भी कुछ नहीं कहा.
मुझे जीवन में बेईमान लोग भी मिले हैं पर उनकी संख्या अबतक ईमानदार लोगो की अपेक्षा नगण्य सी रही है. जो एक-दो लोग बेईमान मिले वो न तो मुझसे नीचे के तबके के लोग थे और न मेरे साथ के लोग थे अपितु मुझसे ज्यादा समृद्ध थे.
2010 में भारत के एक प्रसिद्ध अस्पताल में मेरी एंजियोप्लास्टी हुई. दो स्टंट भी लगे. सब कुछ ठीक-ठाक हो गया. दुःख केवल इतना है कि पैसों का इन्तेजाम करने में दो घंटे लग गए और उतनी देर मुझे ऑपरेशन टेबल पर लिटा कर रखा गया. मुझे एक तीसरा स्टंट लगाने की भी ताकीद की गयी थी. मैं पुणे के एक प्रसिद्ध अस्पताल के बहुत ही प्रतिष्ठित डाक्टर से मिला. मैंने उन्हें बताया कि मुझे एक स्रोत से रियायती दाम में ब्रांडेड स्टंट मिल जायगा. पर डाक्टर ने सीधे नकार दिया क्यूंकि उसमें मिलने वाले कमीशन से वह वंचित रह जाता.
आज समूची राजनीतिक पार्टियां देश का भला करने में लगी हैं खासकर आम आदमियों की जिंदगी  खुशहाल करने की कसमें खा रहे है. सत्तारूढ़ पार्टी ने 5 लाख करोड का घोटाला किया है और डीज़ल तथा गैस के दामों में पुरजोर वृद्धि करके आम आदमी को खुशहाल कर दिया है. अब अगर कोई दूसरी पार्टी सत्ता में आती है तो वह बिचारी पिछले 10 सालों से भूखी कम से कम 20 लाख करोड का घोटाला तो करेगी ही और आम आदमी की जिंदगी को कुछ और ज्यादा खुशहाल कर देगी. 
आम आदमी कम खायेगा तो स्वस्थ रहेगा, रुखा-सूखा खायेगा तो ज्यादा स्वस्थ रहेगा, पैदल या साईकल पर आना-जाना करेगा तो बिल्कुल स्वस्थ रहेगा, छोटा परिवार रखने के लिए शादी न करने का प्रयत्न करेगा और प्राणायाम (हवा खा-पीकर) पूर्णरूपेण  सुखी हो जायेगा.
भारत की आबादी बहुत जल्द ही 1947 की 35 करोड तक आ जायेगी. २०२५ तक परिष्कृत और नवीनतम  तकनीकें नानो-टेबलेट्स से बाजार भर देगीं जिससे प्रत्येक मनुष्य स्वस्थ और भरा-पूरा  रहेगा . शुद्ध घी 1 रुपये किलो और बासमती चावल रुपये का 5  किलो मिलने लगेगा. 
पृथ्वी पर अगर स्वर्ग कहीं होगा तो वह यहीं  होगा, यहीं होगा, यहीं होगा !  
   

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