Sunday, April 14, 2013

पूरब और पश्चिम !


"Many people still have this crude notion that the West is materialistic, and the East is spiritual.  By ‘West’, they particularly point towards the United States, England, France, etc., as these countries are rich, and by ‘East’ they mean themselves, Indians. Indians are spiritual, and the ‘westerners’ are materialistic. Especially so, for those who have not gone out of India, or have just gone as tourists, Times have changed, and our ideas should change. The world is one now and the problems are the same everywhere." - Swami Vivekanand

स्वामी विवेकानंद ने आज से सौ वर्ष पहले यह कहा था की जब पूर्व पश्चिम की भौतिकतावाद और पश्चिम पूर्व की आध्यातिक्मता को समिश्रित कर लेगा तब सत्य में एकात्मकता का सृजन होगा. काश ! इस पृथ्वी के 1000 करोड़ आबादी में कोई भी दो मनुष्य एक जैसी सोच रखता. मेरी सोच भी शायद कुछ भिन्न ही होगी.
पश्चिमी देशों में या यों कहिये विकसित देशों में 95% लोगों के पास मोटर कार हैं. सड़कें एक क्षण भी अकेली नहीं होतीं हैं. पर जब भी कोई पैदल सड़क पार करना चाहता है तब कारें रूकती ही नहीं है बल्कि उनमें बैठा शख्स मुस्कुराते हुए इशारे से सड़क पार करने का आग्रह करता दिखता है. अमेरिका में दायीं तरफ की ड्राइव होने के कारण मुझसे सड़क पार करने में अक्सर गलती हो जाती थी. पर कारें रूकती ही नहीं थी बल्कि इतने हौले से रूकती थीं कि मुझे सुनाई भी नहीं पड़ता था. क्या ये वही देश हैं जहां कुछ दशक पहले काउ-बॉयज की बहुतायत होती थी जो घोड़े पर ही दिखाई देते थे और बात-बात पर गोलियां चलाते थे. फिल्मों में सबसे ज्यादा तालियाँ “When shoot, shoot don’t talk !“ पर बजती थीं.
भारत जैसे विकासशील देशों में ऐसा कम देखने को मिलता है. यहाँ के लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर ज्यादा निर्भर हैं. छोटे शहरों और कस्बों में ऑटो रिक्शा का बोलबाला है. इनके चालकों को केवल सवारी या बॉडी दिखती है. थोड़ी सी गफलत हुई और चोट पहुंची. पर यहाँ भी भातिकतावादी में अध्यात्म का मिश्रण दिखता है. चाहे आप कितनी भी दूर हों, अगर चालक को बॉडी दिख गयी तो वह घरघराती रिक्शा खड़ी कर आपका इन्तेजार करेगा चाहे बाकि बैठे यात्री कितना भी तिलमिलाएं.
कैरी ऑन व्हिल्ड लगेज को प्लेटफार्म की सीढियां चढाने में मुझे परेशानी होती है. ट्रेन से यह सोचते उतर रहा था कि भले कुली 100-150 मांगे, मुझसे ये न ढोया जायेगा. तभी एक ऑटो रिक्शा वाला प्लेटफार्म पर मेरे पास आया. उसने मुझसे पांच किलोमीटर दूर मेरे निवास के 120 रुपये मांगे. वह 20-30 रुपये ज्यादा मांग रहा था. स्टेशन पर रेट ऐसे भी थोडा ज्यादा होता है. मेरे हामी भरने पर उसने मेरा बैगेज मेरे हाथ से ले लिया और तीन फर्लांग दूर सीढ़ी चढ़कर अपने रिक्शा तक आ गया.
रिक्शे पर बैठा मैं उसे अहिस्ता और पैदल लोगों से बचाकर चलाने की हिदायत देने लगा. साथ ही मैंने उसे पश्चिमी देशों की तमीज बतायी.
इनलोगों का हर रोज मेरे जैसे सैकड़ों से पाला पड़ता है. उसे मालूम था कि उन देशों में पैदल लोगों को घायल करने पर बहुत बड़ा हर्जाना देना पड़ता है और यहाँ तो 100-200 में ही छुटकारा मिल जाता है.

मुझे लगा कि हमलोग कुछ ज्यादा ही भौतिकवादी हो गए है और वे लोग मानवतावादी. आज हमारे देश में जब कोई साहबजादा फूटपाथ पर सोये लोगों को कुचलता है तो कहता है कि फूटपाथ सोने की जगह नहीं है पर वह यह भूल जाता है की फूटपाथ शराब में धुत गाड़ी चलाने की जगह भी नही है. अकाल मृत्यु में भारत में एक मुश्त कुछ दे-दिलाकर रफा-दफा कर दिया जाता है जबकि पश्चिमी देशों में परिवार को बाकायदा रिहैबिलिटेट किया जाता है.  
बहुत पहले मैंने  शैलेन्द्र का एक गीत सुना था “ ये पूरब है, पूरब वाले हर जान की कीमत जानते हैं “. क्या ये वही देश है जहां मानवता की रक्षा के लिए लोग नीलकंठ बन जाते थे और ब्रह्मास्त्र का रुख निर्जन हिमालय की तरफ मोड़ देते थे ? 

 

Saturday, April 13, 2013

The Longest Dawn !

In general, the length of a day varies throughout the year, and depends upon latitude. This variation is caused by the tilt of the Earth's axis of rotation with respect to the ecliptic plane of the Earth around the sun. At the solstice occurring about June 20–22, the north pole is tilted toward the sun, and therefore the northern hemisphere has days ranging in duration from just over 12 hours in the southern portion of the Tropic of Cancer to 24 hours in the Arctic Circle, while the southern hemisphere has days ranging in duration from just under 12 hours in the northern portion of the Tropic of Capricorn to zero in the Antarctic Circle.



I find the nature at its best when I behold a sunrise or a Sunset from wherever I am. The location may be anywhere in the world. It may be my bedroom window, a non-descript street disappearing at a blank canvas either in the East to greet the rising Sun or in the West to greet or bid adieu to the setting Sun.
I remember when I was a child; I used to get up early in the morning to see the Sun rising from the Far East where the street closed at the park end. At that age, the Sunset used to be a sorry affair for me as I had to return back after playing.
Early in my college career, I had the opportunity to visit Netarhaat some 150 KM West of Ranchi(Jharkhand, India). This place was at a height of over 1000 meter and was famous for witnessing Sunrise and Sunset particularly in the summer. I remember that we perched on the roof of the bus two hours before the sunrise. Every moment was beyond description. I saw shades of color that I had never seen before either in my spectroscopy periods or anywhere in a movie. Every second of the 2x60x60 second had a distinctly different landscape; from dark to indigo to purple and so on. It is surprising that till now no professional video is available on the Utube. The ones that I have uploaded are from some non-descript camera.
My rendezvous with Netarhaat in 1963 enabled me to make up my mind, to pass my best time with the beautiful Sun when it rises and when it sets. At Ranchi, The highest point from my residence was the hillock over which the Jagannath temple was situated. This 100 meter high hillock was four kilometer from my house. The distance was perfect for my morning walk. I used to reach the top of the hillock well before the Sunrise.
My unending tryst with the life giving Sun kept on peaking. Last year, I was in Baldivis (Perth, Western Australia). I never missed a day unless it was highly overcast. The place has a clear blue sky with the long distance of distinct vision extending to the infinity where the Sun peeps up from beyond the mountain range or dips down over the Ocean. The jewel in the crown was the Cape Peron where tourists flock to witness the Sunset over the Ocean.
As if, the nature wished me to hint that I have not even watched a small minuscule of what it has to offer, I was forced to sit in the middle column of the airline that was carrying me to New York from Mumbai. The flight took off at 2130 IST. It was a 20 hours flight which flew over Moscow, Helsinki, Berlin, and London before landing at JFK at 0730 hrs.(New York time).
Somewhere above Moscow , from the distant side window at the left , I found the  wings of the aircraft splashed with crimson red indicating that the Sun was about to rise. To my utter surprise, this state of the morning remained at it was until we entered the US territory some time at 0600 hrs.( Local time).
It was to be the longest sunrise that I ever got a glimpse of.  At around 800 KMH the aircraft (Boing 777) had a race with the darkness at its tail and dawn at its nose. Perhaps, the view on the Moon and on satellites in geo-stationary orbits would provide a more fascinating looksee.
How is it that nobody has thought of putting this marvel of the on the internet or more specifically in websites such as Utube for others to know, learn and savor for eternity?
marvels


Tuesday, April 9, 2013

संस्कारहीन

अमेरिकन वीसा बनवाते समय ही यह पता लग गया था कि मुझे तरह-तरह की सिक्यूरिटी चेकिंग से गुजरना पड़ेगा. ११/९ के बाद ऐसा बिलकुल ठीक था. पर सबकुछ इतना कुछ होते हुए भी बहुत अच्छे से और तेजी कार्यवायी हो रही थी.  कहीं कोई परेशानी नहीं हुई. लगता था जैसे हर समय और अच्छा करने की कोशिश होती रह्ती है.  इसीलिए 2-3 हजार की पंक्ति दो घंटे के अन्दर बड़ी आसानी से निबटा ली जाती थी.
अंत में, एअरपोर्ट से निकलने के पहले की इमिग्रेशन चेकिंग मुझे कुछ ज्यादा ही आतंकित किये हुए था. पंक्ति में मेरा स्थान चौथा था. क्यूबिकल में बैठने के लिए जेम्स बांड सरीखा एक नवयुवक मेरे पास से गुजरा. उसके होल्स्टर में एक भारी रिवाल्वर थी. बैठने की बाद उसने अपनी निगाहें लगी पंक्ति की ओर डालीं. उसकी निगाहों में अहंकार की भरपूर झलक थी. पहले नम्बर पर एक 25-30 वर्ष की नवयुवती थी. उसने इशारे से उसे खिड़की के पास आने को कहा. मॉनिटर पर पहले से पूरा विवरण था. उससे मुस्कुरा कर बातें की और दो मिनटों में क्लीयरेंस दे दी.
अब मैं पंक्ति में तीसरे नंबर पर था. मैं सोच रहा था कि ऐसे ही किसी शख्स ने शाहरुख खान और हमारे राष्ट्रपति श्री कलाम की क्लास ली होगी. मेरे आगे  श्रीलंका के नव-दम्पति थे. खिड़की के पास पहुंचते ही दोनों ने तेज़ आवाज़ में ऑफिसर को ग्रीट किया. शायद उनकी तेज़ आवाज़ ने या उनलोगों ने कुछ ऐसा जवाब दिया की बात बनती नहीं दिखी. पूरे दस मिनट साक्षात्कार चला. इसी बीच ऑफिसर ने हमारी ओर देख कर मुंह बिचकाया पर मेरे पीछे खड़ी लड़की को देखकर मुस्कुराया. मैंने भी पीछे मुड़कर देखा. एक बहुत ही खूबसूरत लड़की भड़कीले पहनावें में खड़ी दिखी. ऑफिसर में अथॉरिटी के साथ सस्तापन साफ़ झलक रहा था. मुझे अपने यहाँ के सिपाही और क्लर्क याद आ गए.
जैसा मैंने अनुमान लगाया था, कारण बिलकुल अलग था पर हमलोगों को क्लीयरेंस देने में उसे दो मिनट भी नहीं लगा. आगे बढ़ते समय मैं सोच रहा था की जरूर शाहरुख ने अपना एटीच्युड दिखाया होगा और स्मार्ट बनने की कोशिश की होगी. 
पर श्री कलाम ? जब मेरे जैसे साधारण व्यक्ति का पूरा ब्यौरा उनलोगों ने लिया था तो श्री कलाम तो एक महान देश के महान राष्ट्रपति थे और न जाने कितनी बार एक अति विशिष्ट व्यक्तित्व की हैसियत से अमेरिका आयें होंगे. अमेरिका यह कहकर कदापि अपनी सफाई नहीं दे सकता है की वह श्री कलाम को नहीं जानता था.. ऐसा कहना उनके जांच प्रणाली पर एक बेहूदा कलंक होगा.
ये ना तो एटीच्युड और न पर्सनालिटी क्लैश था ! एक सीधे सादे, महान व्यक्तित्व और काफी बुजुर्ग के साथ एक संस्कारहीन की बदसलूकी और बदतमीजी थी.
अब समय आ गया है कि किसी को जिम्मेवारी देने के पहले उस व्यक्ति को भली-भांति जान लिया जाये चाहे वह जिम्मेवारी व्यक्तिगत हो, सामाजिक हो अथवा सरकारी.
अभी डी०एन०ए० और जेनेटिक्स इंप्रिंट को मात्र बायोलॉजिकल ब्योरा जानने के लिए ही इस्तेमाल किया जा रहा है  भविष्य में यह व्यक्तित्व की गुणवत्ता मापने  का अचूक जरिया बन सकेगा.  तब यह भष्ट्राचार से लड़ने का एक अमोघ अस्त्र भी हो सकेगा.

Thursday, April 4, 2013

चीनी ज्यादा !


 बनारसी पान का लुत्फ़ तब ज्यादा मिलता है जब लखनवी अंदाज में पेश किया जाये और खानेवाला कोई सूरमा भोपाली हो. लखनऊ की मस्जिद गली चौक पर बनारसी पान की दुकान पर खाने और मुस्कुराने वाले आते जाते रहते. उनमे एक मौलवी साहब भी थे जो एक दिन बीच कर तशरीफ़ लाते थे. बहुत व्यस्त हो ऐसी बात नहीं पर कंजूसी में वाकई सूरमा थे. बिचारा बनारसी पान तो मुंह में डालते ही गलने लगता है . पर उस एक पान की गिलौरी को भी मौलवी बहुत सहेज की मुंह में दबाते और दूसरे दिन सुबह मुंह धोते वक्त बड़ी मजबूरी से उसकी बची निशानी को कचरे के डिब्बे में जाने देते.
एक दिन पान वाले ने कह ही दिया : हुज़ूर! कैंसर हो जायेगा. इतनी कंजूसी भी ठीक नहीं. लोग-बाग जाने क्या-क्या कहते हैं.” बस, मौलवी साहब खफा हो गए. दस दिन तक पान की दूकान पर नहीं आये.
एक सुबह, एक लीटर वाली प्लास्टिक की बोतल में कुछ लबालब भरकर हाथ में झुलाते-दिखाते  उधर से निकल रहे थे. एक दम साफ़ था . बोतल में कुछ दमदार तो जरूर था जिसे दिखाकर अपनी कंजूसी पर लगा दाग मिटाना चाह रहे हों. पान वाले के पूछने पर उन्होंने तपाक से बताया जैसे बताने को काफी बेकरार हो. बोले-“मियाँ ! डाक्टर के पास जा रहा हूँ अपना पेशाब जांच करवाने. कम ले जाता तो कहते यहाँ भी मैंने कंजूसी कर दी.”
दिन निकलते उन्हें भरी हुई बोतल के साथ लौटते देख पान वाले ने पूछ ही लिया कि क्या जांच नहीं हुई . मौलवी ने झेपते हुए जवाब दिया,” जांच बखूबी हुई. डॉक्टर ने कहा है कि इसमें बहुत ज्यादा शुगर है. मुझे दस चम्मच के बजाय केवल एक चम्मच लेने को कहा है.”
पान वाले को उस समय तो कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर भरी हुई बोतल वे लौटा के क्यों ले जा रहे थे . सुबह चाय पीते वक्त उसे बात समझ में आई और साथ ही बड़े जोरों की उलटी आ गयी. 

सौजन्य : लक्ष्मी 

Wednesday, April 3, 2013

देखन में छोटन लगे !


आज बहुत दिनों के बाद फुर्सत से बालाजी हेयर कटिंग सैलून वाले ने मेरी हजामत बनायीं. लोकल बॉडी टैक्स लगने के चलते पूना की सभी दुकानें बंद थीं. मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसे भी दो लोग बंद करने को कह गए हैं. उसने बताया कि यहाँ भाऊ लोगों का तो डर नहीं है पर तरीके-तरीके से हाथ उमेठा जाता है. साल में 15-20 हज़ार चंदे में ही निकल जाते हैं. उसने यह भी बताया कि महीने में सब दे-लेकर 25-30 हज़ार की आमदनी हो जाती है. इतना तो यहाँ के एम०बी०ए० पास ई-क्लर्क का टेक-होम वेतन भी नही होगा.
मैं थोड़ा भी आश्चर्यचकित नहीं था. अभी कुछ दिन पहले में चेम्बूर से लोकल पकड़ने के पहले चाय पीने स्टाल पर गया. वहाँ एक बैसाखी वाले भिखारी ने काउंटर पर अपनी झोली उड़ेल रखी थी. करीब 3-4 किलो रेजगारी थी जिसमें पांच का सिक्का कम से कम 200 के आस-पास रहा होगा. चाय वाले ने बताया कि उस भिखारी की एक दिन की कमाई 5000 रुपये है. महीने का 1.5 लाख तो IIM वालों को ही मिलता है.
बहुत पहले मैं यह सब सुनकर भौचक रह जाता था , अब नहीं. जब 2000 में में पहली बार पूना आया था तब यहाँ लोग सड़क या पब्लिक प्लेस में सिगरेट पीना बंद कर चुके थे. मुझे भी जब सिगरेट पीना होता तो सड़क के स्टाल पर ही खड़े होकर पी लेता था.
सामने सड़क के पार, एक बहुमंजिला अपार्टमेंट बन रहा था. यकीनन , 4 करोड से ऊपर का प्रोजेक्ट लग रहा था. मैं हरदम उसे ललचाई दृष्टि से देखता था. काश, इसमें मेरी बेटी एक फ्लैट ले लेती. मैंने चौरसिया पान-सिगरेट बेचने वाले से वहाँ फ्लैट की कीमत जाननी चाही. उसने बताया कि यहाँ 2BHK की कीमत 10-15 लाख के आसपास है. जो सड़क और बाजार के आसपास हैं उनकी कीमत ज्यादा है. उसने मुझे कहा कि अगर फ्लैट लेना हो तो वह मेरी मदद कर सकता है. मैंने उसे बताया कि अगर मुझे फ्लैट लेना होगा तो उस सामने वाले बनते हुए में ही लेना चाहूँगा. उसने कहा कि तब तो आपका काम और आसान हो गया वह बनता एपार्टमेंट मेरा ही है.