Thursday, April 4, 2013

चीनी ज्यादा !


 बनारसी पान का लुत्फ़ तब ज्यादा मिलता है जब लखनवी अंदाज में पेश किया जाये और खानेवाला कोई सूरमा भोपाली हो. लखनऊ की मस्जिद गली चौक पर बनारसी पान की दुकान पर खाने और मुस्कुराने वाले आते जाते रहते. उनमे एक मौलवी साहब भी थे जो एक दिन बीच कर तशरीफ़ लाते थे. बहुत व्यस्त हो ऐसी बात नहीं पर कंजूसी में वाकई सूरमा थे. बिचारा बनारसी पान तो मुंह में डालते ही गलने लगता है . पर उस एक पान की गिलौरी को भी मौलवी बहुत सहेज की मुंह में दबाते और दूसरे दिन सुबह मुंह धोते वक्त बड़ी मजबूरी से उसकी बची निशानी को कचरे के डिब्बे में जाने देते.
एक दिन पान वाले ने कह ही दिया : हुज़ूर! कैंसर हो जायेगा. इतनी कंजूसी भी ठीक नहीं. लोग-बाग जाने क्या-क्या कहते हैं.” बस, मौलवी साहब खफा हो गए. दस दिन तक पान की दूकान पर नहीं आये.
एक सुबह, एक लीटर वाली प्लास्टिक की बोतल में कुछ लबालब भरकर हाथ में झुलाते-दिखाते  उधर से निकल रहे थे. एक दम साफ़ था . बोतल में कुछ दमदार तो जरूर था जिसे दिखाकर अपनी कंजूसी पर लगा दाग मिटाना चाह रहे हों. पान वाले के पूछने पर उन्होंने तपाक से बताया जैसे बताने को काफी बेकरार हो. बोले-“मियाँ ! डाक्टर के पास जा रहा हूँ अपना पेशाब जांच करवाने. कम ले जाता तो कहते यहाँ भी मैंने कंजूसी कर दी.”
दिन निकलते उन्हें भरी हुई बोतल के साथ लौटते देख पान वाले ने पूछ ही लिया कि क्या जांच नहीं हुई . मौलवी ने झेपते हुए जवाब दिया,” जांच बखूबी हुई. डॉक्टर ने कहा है कि इसमें बहुत ज्यादा शुगर है. मुझे दस चम्मच के बजाय केवल एक चम्मच लेने को कहा है.”
पान वाले को उस समय तो कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर भरी हुई बोतल वे लौटा के क्यों ले जा रहे थे . सुबह चाय पीते वक्त उसे बात समझ में आई और साथ ही बड़े जोरों की उलटी आ गयी. 

सौजन्य : लक्ष्मी 

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