पिछले वर्ष शायद इसी मौसम में मैं सुबह की सैर से मंदिर होकर वापस लौट
रहा था. तभी पीछे से किसी बच्ची की आवाज सुनाई पड़ी. वह पूछ रही थी – अंकल !
प्रेसिडेंट में एस होता है ना ! और अंकल ने जवाब दिया – "हां बेटे ! It
is P R E S I D E N T . PRECEDENT में C होता है, जिसका
मतलब “मिसाल” होता है." लगता था अंकल और बच्ची किसी रिक्शे पर आ
रहे थे. पर ये क्या ? जब रिक्शा बगल से गुजरी तो रिक्शे पर 7-8 वर्ष की दो बच्चियां बैठीं
थीं. अंकल कोई और नहीं वह रिक्शा वाला ही था. अंग्रेजी की इतनी समझ साफ़ बता रही थी कि वह काफी पढ़ा-लिखा था. वह बच्चियों को
स्कूल पहुंचाने ले जा रहा था. इसके बाद दो-तीन बार उनलोगों से भेंट हुई पर दूरी
इतनी थी कि उनलोगों के मध्य बातों का विषय और माध्यम क्या था पता नहीं लग पाता था.
आज वह रिक्शावाला सामने से आता दिख ही गया. वही दो लडकियां बैठी थीं. इतनी सुबह, वह भी चेहरे पर मुस्कुराहट लिए इस ढलती
उम्र में मानों मेरी तरह सुबह की सैर में निकला हो. एकदम ऐसा लग रहा था कि उसके
पैर पैडल को लयबद्ध गोल घुमा रहे थे. कद-काठी और पहनावा किसी आम रिक्शेवाले की तरह, चेहरा भी धुप में झुलसा हुआ लंबा तिकोना पर
आँख में गजब की चमक थी. वह 65 के आस-पास का लग
रहा था. रिक्शा चलाने वाले अपनी उम्र से 10 वर्ष ज्यादा के ही
दीखते हैं. इच्छा तो हुई कि उसे रोककर उसके बारे में और जानें पर सोचने में जितना
वक्त गुजरा उसमें वह बहुत आगे निकल गया. मैं भी उसी दिशा में बढ़ गया जिधर वह
रिक्शा वाला गया था. कोई 100 मीटर चलने के बाद बाईं तरफ मोड़ पर स्कूल बस स्टैंड पर खड़ी दिखी. लड़कियों को उतार कर वह वही रिक्शे पर
आराम से बैठ गया. वह जरूर उनकों बस पर चढाने के बाद ही वहां से जाएगा.
एक दिन फिर
दिखा. रिक्शे पर बैठे एक वृद्ध के लिए सब्जियां खरीद रहा था. सावले, तिकोने, लम्बे
चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी उसका मजहब बता रही थी. पर संतोष भरे चेहरे पर चमकती आँखे
बहुत कुछ और भी बता रही थी.
2-3 महीने की उत्सुकता भरी जानकारी जो इक्कठी हुई
वह इस प्रकार है.
वह वृद्ध मुसलमान रिक्शेवाला कभी बुक-बाईंडिंग का
काम करता था. वहीं किताबों के ढेर ने उसे पढ़ा लिखा कर सयाना किया. शायद थोडा ज्यादा
और बहुत ठीक तरह से.
बाल-बच्चों को बसाने और औरत के इंतकाल के बाद वह
अकेले बहुत दूर किसी भी अनजान आशियाने की खोज में निकल पडा. सबसे मुफीद जगह उसको
यही मदरसे और मस्जिद की पिछली दीवारों से सटी एक 8/8 की खोली में मिली. बस सुबह
ज़िंदा रहने भर के लिए कमा लिया करता. तबियत पसंद समय तक सुबह के समय की रिक्शा
चालन उसके स्वास्थ्य को ठीक रखती. बाकी समय वह किताबों और रद्दी अखबारों में उलझा
रहता. कहने की आवश्यकता नहीं है कि उसका सुफिआना अंदाज जाहिर कर रहा था कि ज्यादातर
जहीन पढाई ही करता होगा.
खोली के बाहर जरूरत पड़ने पर ही चुल्हा जलता था.
ज्यादातर उसके भोजन का इन्तजाम उसके सवारीवाले कर दिया करते थे. रिक्शा वह सुबह ही
चलाता था जिससे उसकी जरूरत पूरी हो जाती थी. वह कुछ पैसा बुरे वक्त के लिए जोड़कर
नहीं रखता था. उसने बड़ी मासूमियत से मुस्कुराते हुए कहा कि उसके जानकार और मदरसे
वाले उसके कफ़न का इन्तजाम कर देंगे.
इस तरह का चरित्र मुझे सॉमरसेट मॉम के "रेजर'स एज" में दिखा था. नायक लैरी सबकुछ आजमाने के बाद टैक्सी चलाने लगता है. हर समय नए लोग,
नयी जगह; जुड़ पाने की कोई संभावना नहीं.
और बाद में आयन रैंड के "फाउंटेनहेड" में दिखा था. आर्किटेक्ट
नायक रोर्क कोयले की खदान में मशक्कत करने चला जाता है.
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