मैं पिछले 15 वर्षों से साई बाबा के दर्शन करने शिरडी आ रहा हूँ । इस बार रामनवमी नवरात्र को जुगाड़ बना । सभी मना कर रहे थे, मेरी तबीयत, गर्मी और रामनवमी के अवसर पर भीड़ की वजह से । सप्तमी को दोपहर के समय पहुंचा । सूरज ढलते हमलोग लाइन में लग गए । इतनी भीड़ मुझे पहली बार देखने को मिली थी । अढ़ाई घंटे बाद मात्र एक झलक देखने को मिली । दर्शनार्थियों की श्रद्धा और सबुरी देखिये, उतनी गठीली भीड़ में भी मुझे साष्टांग प्रणाम करने का अवसर दे दिया ।
शिरडी साई बाबा सबके लिए मात्र श्रद्धा और सबुरी की चाह रखते हैं और जो बात बड़े बड़े पंडित और मुल्ला नहीं समझ पाये उन्हें ये तीन शब्दों में समेट देते हैं “ सबका मालिक एक “ । सबका मालिक एक तो मेरी पैदाइशी समझ थी पर श्रद्धा और सबुरी (धैर्य) उम्र के साथ पैठने लगी थी । सड़क तक पहुंची कतार में हमलोग भी शामिल हो गए । तीन लेयर वाली दो किलोमीटर लंबी लाइन स्वयं श्रद्धा और सबुरी की जीती- जागती मिसाल थी । 50 हज़ार से ज्यादा श्रद्धालु धीमी गति से आगे बढ़ती लाइन में मुस्कुराते, भजन गुनगुनाते, साई बाबा का नाम जपते धैर्य का अच्छा उदाहरण दे रहे थे । एक बार स्टैंपीड की नौबत भी दिखी पर उसका कारण गेट गॉर्ड की नासमझी थी। श्रद्धालु एक दूसरे की हौसला अफजाई करते, रंगरूटों के झुण्ड को रास्ता देते अपने गंतव्य तक पहुँच रहे थे। दर्शन के बाद हमलोगों ने निर्णय लिया कि गुरूवार अष्टमी को और राम नवमी को भीड़ दूगनी तिगुनी होने वाली है तब हमलोग किसी सुगम स्थान से दर्शन पूजा कर लेंगे।
अष्टमी की सुबह मंदिर की परिक्रमा करते मुख दर्शन का गेट दिख गया। मैं श्रीमती का बैग, जूते व् सेल लेकर दक्षिणमुखी हनुमान जी के चौखट से सटे बाहर चबूतरे पर बैठ गया। श्रीमती मुख दर्शन और द्वारका माई के दर्शन कर प्रसन्न मुद्रा में लौट आयी। उसके बाद शाम को हमलोगों ने साई खिड़की की तरफ हो रहे प्रवचन और उसके बाद टीवी स्क्रीन पर दिख रहे सायंकालीन धुपआरती का दर्शन किया।
रामनवमी की सुबह दर्शनार्थियों की भीड़ एक लाख से ऊपर रही होगी। मैंने दो घंटे चबूतरे पर बिताये। इसी दरम्यान मैंने मुख दर्शन किया और हनुमान जी की पूजा- आरती में भाग लिया। दो महाशयों को जानने का भी अवसर मिला।
ठीक सामने एक पढ़ा-लिखा 50-55 वर्षीय बुजुर्ग पेड़ा बेच रहे थे। बेच कम लोगों में सैंपल ज्यादा बाँट रहे थे। एक कुत्ता भी आकर अपना हिस्सा ले गया। सबसे बड़ी विनम्रता से पेश आ रहे थे । वहीँ खड़े रहकर वह साई और हनुमान जी की आरती व् पूजा को प्रणाम भी करते रहते थे। बाद में उन्होंने भी पेड़े का एक टुकड़ा लेकर पानी पिया। मुझे पेड़े की गुणवत्ता पर अब कोई संदेह नहीं रहा। मैंने उससे आधा किलो पेड़ा 100 रुपये में खरीदा। मैंने उनसे पूछा की वेश-भूषा से तो वह काफी पढ़े- लिखे लगते हैं। उन्होंने बताया की उन्होंने अपना कारोबार बच्चों के जिम्मे दे दिया है और अब बाकी समय साई की छाया में बिताना है। तभी एक श्रद्धालु हनुमान मंदिर से बाहर आ हलुआ प्रसाद बाटने लगा। पेड़े वाले ने मुझे प्रसाद लेने को कहा और बताया कि वही पीछे के होटल के मालिक हैं। हर सुबह प्रसाद चढ़ाकर बांटते हैं। साढ़े आठ बजे से वे पेड़े का खोमचा सम्हालेंगे और वह खुद होटल की मैनेजरी।शिरडी साई बाबा सबके लिए मात्र श्रद्धा और सबुरी की चाह रखते हैं और जो बात बड़े बड़े पंडित और मुल्ला नहीं समझ पाये उन्हें ये तीन शब्दों में समेट देते हैं “ सबका मालिक एक “ । सबका मालिक एक तो मेरी पैदाइशी समझ थी पर श्रद्धा और सबुरी (धैर्य) उम्र के साथ पैठने लगी थी । सड़क तक पहुंची कतार में हमलोग भी शामिल हो गए । तीन लेयर वाली दो किलोमीटर लंबी लाइन स्वयं श्रद्धा और सबुरी की जीती- जागती मिसाल थी । 50 हज़ार से ज्यादा श्रद्धालु धीमी गति से आगे बढ़ती लाइन में मुस्कुराते, भजन गुनगुनाते, साई बाबा का नाम जपते धैर्य का अच्छा उदाहरण दे रहे थे । एक बार स्टैंपीड की नौबत भी दिखी पर उसका कारण गेट गॉर्ड की नासमझी थी। श्रद्धालु एक दूसरे की हौसला अफजाई करते, रंगरूटों के झुण्ड को रास्ता देते अपने गंतव्य तक पहुँच रहे थे। दर्शन के बाद हमलोगों ने निर्णय लिया कि गुरूवार अष्टमी को और राम नवमी को भीड़ दूगनी तिगुनी होने वाली है तब हमलोग किसी सुगम स्थान से दर्शन पूजा कर लेंगे।
अष्टमी की सुबह मंदिर की परिक्रमा करते मुख दर्शन का गेट दिख गया। मैं श्रीमती का बैग, जूते व् सेल लेकर दक्षिणमुखी हनुमान जी के चौखट से सटे बाहर चबूतरे पर बैठ गया। श्रीमती मुख दर्शन और द्वारका माई के दर्शन कर प्रसन्न मुद्रा में लौट आयी। उसके बाद शाम को हमलोगों ने साई खिड़की की तरफ हो रहे प्रवचन और उसके बाद टीवी स्क्रीन पर दिख रहे सायंकालीन धुपआरती का दर्शन किया।
रामनवमी की सुबह दर्शनार्थियों की भीड़ एक लाख से ऊपर रही होगी। मैंने दो घंटे चबूतरे पर बिताये। इसी दरम्यान मैंने मुख दर्शन किया और हनुमान जी की पूजा- आरती में भाग लिया। दो महाशयों को जानने का भी अवसर मिला।
मैं चबूतरे पर बैठकर प्रसाद खाने लगा। तभी देखा कि होटल मालिक बगल में बैठे वृद्ध सज्जन के पास आकर, प्रणाम कर, प्रसाद हाथ में रख गए। एक- दो लोग उनका चरण प्रणाम करके भी गए। वृद्ध महाशय मेरी और देखकर बोले की आज 12 दोपहर को पूजा होने के बाद ही वे कुछ खाएंगे इसलिए वह इस प्रसाद का क्या करें। जाहिर था वह हलुआ प्रसाद मुझे देना चाह रहे थे। मैंने उनकी परेशानी दूर कर दी। वह 75 वर्ष के थे और 15 वर्ष की उम्र से शिरडी आ रहे थे।उन्होंने मुझसे मेरे बारे में पूछा। यह जानने पर की मैं कुछ वर्षो से लेख(ब्लॉग) इत्यादि लिखकर अपना समय गुजारता हूँ उन्होंने आश्चर्य दिखाया कि मैं पैसा कमाने के लिए कुछ नहीं करता हूँ। मेरे मुंह से बेसाख्ता निकल गया कि सबकुछ करने के बाद अंत में तो यही आना है उन्होंने तकरीबन मुझे अपने सीने से लगा लिया। उनकी बहुत संपन्न खेती है नाशिक में । उन्होंने मुझे नाशिक आकर तीर्थ स्थलों के दर्शन और कुछ समय साथ बिताने का न्योता दिया।
मजेदार बात तो ये लगी कि अगर मैं भी नाशिक का उनकी वेशभूषा वाला खेतिहर होता तो शक्ल और वेश-भूषा में बिलकुल उनका छोटा भाई लगता।
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