हमलोग कितनी आसानी से दूसरों की अलोचना कर
देते हैं । आलोचना वह भी स्वयं से ज्यादा हैसियत रखने वालों की चाहे वह ईश्वर हो
अथवा देश का प्रधान मंत्री । तब हम यह भी भूल जाते हैं की हमलोगों को एक मास्टर,
क्लर्क, इंजिनियर या डॉक्टर भर बनने में कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी कितना कुछ
त्यागना पडा होगा । हमलोगों से अपना एक
छोटा सा परिवार तो भली-भांति संभल नहीं पाता है पर जो पूरा देश संभालते हैं अथवा
ब्रह्माण्ड सम्भालते हैं उनपर गाहे-बगाहे छींटाकशी करने से बाज नहीं आते । हमलोगों
का अस्तित्व कितना ओछा है , तुच्छ है इसका एक उदाहरण मुझे अपने जीवन के 25वें वर्ष
में ही मिल गया था ।
1975 में हमलोगों की क्रिकेट टीम रांची
शहर की अव्वल टीमों में गिनी जाती थी । तब जाड़ों में ही क्रिकेट खेली जाती थी ।
छुट्टी के दिनों में मैचेस खेले जाते थे । हमारे क्लब का बेंच-स्ट्रेंथ 30 के लगभग
रहा करता था । एक शनिवार मैच के पहले हमलोग लाइफ साइज़ प्रैक्टिस कर रहे थे । जाहिर
है तीन घंटे के अंदर 30 में से 11 खिलाड़ियों को उनकी दिखती दक्षता पर चुनना था ।
इतने कम समय में सभी को बैटिंग, बोलिंग और फील्डिंग के पैमाने पर मापना एक टेढ़ी खीर
होती थी । बाउंड्री लाइन पर अच्छी-खासी दर्शकों की भीड़ भी जमा हो जाती थी । घमंड तो सर छूता ही था इसलिए
एक एटीच्युड भी बनाकर रखना पड़ता था । क्लीन
बोल्ड होने पर भी ऐसे लौटते थे जैसे कुछ हुआ ही न हो । कभी-कभी कोई सीनियर भी अपनी
सलाह या टिप देने आ जाते थे ।
मेरी बोलिंग उस दिन सटीक पड़ रही थी ।
खिलाड़ियों और दर्शकों की तालियाँ मुझे उत्साहित भी करती जाती थी । तभी भीड़ में से
एक 40-42 वर्ष के छ फूट के आकर्षक व्यक्तित्व वाले महाशय ने आकर लगभग बल्लेबाज़ से
बैट छीन लिया । समय की कमी के कारण खीज तो स्वाभाविक थी पर हमलोगों ने उनकी उम्र
और आकर्षक व्यक्तिव और विशेषकर सफ़ेद शर्ट-पेंट का लिहाज़ करते कुछ नहीं कहा ।
उन्होंने पैड या ग्लव्स नहीं माँगी थी तो आशा थी की एक-दो बाल ही खेलेंगे । मैंने
अपनी बोलिंग जारी रखी ।
लगातार तीन बाल पर तीन छक्के, एक मिड-ऑफ़
पर और दो मिड विकेट पर । मामला खीज से हटकर चुनौती पर आ गया । मैंने बोलिंग अपने
सबसे खतरनाक बॉलर को दे दी । दो छक्के और चार बाउंड्री । उसके बाद तीसरे बालर का
भी वैसा ही भयंकर हश्र हुआ । खेलने के तरीके की अगर तुलना की जाये तो सहवाग सबसे
श्रेयस्कर होगा ।
इसके बाद उन्होंने सबकी तरफ हाथ हिलाकर
अभिवादन किया और भीड़ में खो गए । दर्शक दीर्घा ताली बजा रही थी पर मैदान में हमसब
सन्नाटे में थे । दोबारे वह कभी नहीं दिखे । यह सुनामी हमलोगों के मध्य बहुत दिनों
तक चर्चा का विषय रहा । वह अवश्य टेस्ट मैच मटेरियल रहा होगा । इतनी समझ तो थी ही की उसकी रेटिंग कर पाते और
हाँ अपनी हैसीयत भी समझ पाते ।